Bhagavad Gita Hindi Geeta Geeta Saar Spiritual Chapter 16
||श्रीमद भगवद गीता||
“अध्याय 16 - देव असुर संपदा विभाग योग”
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Astro Motive Astrology by Astrologer Dr. C K Singh |
किसी को भी कष्ट नहीं पहुँचाने का भाव (अहिंसा), मन और वाणी से एक होने का भाव (सत्यता), गुस्सा रोकने का भाव (क्रोधविहीनता), कर्तापन का अभाव (त्याग), मन की चंचलता को रोकने का भाव (शान्ति), किसी की भी निन्दा न करने का
भाव(छिद्रान्वेषण), समस्त प्राणीयों के प्रति
करुणा का भाव (दया), लोभ से मुक्त रहने का भाव (लोभविहीनता), इन्द्रियों का विषयों के साथ
संयोग होने पर भी उनमें आसक्त न होने का भाव (अनासक्ति), मद का अभाव (कोमलता), गलत कार्य हो जाने पर लज्जा का
भाव और असफलता पर विचलित न होने का भाव (दृड़-संकल्प)।
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ईश्वरीय तेज का होना, अपराधों के लिये माफ कर देने का भाव (क्षमा), किसी भी परिस्थिति में विचलित न होने का भाव (धैर्य), मन और शरीर से शुद्ध रहने का भाव(पवित्रता), किसी से भी ईर्ष्या न करने का भाव और सम्मान न पाने का भाव यह सभी तो दैवीय स्वभाव (गुण) को लेकर उत्पन्न होने वाले मनुष्य के लक्षण हैं। 3 Astro Motive Astrology by Astrologer Dr. C K Singh
हे
पृथापुत्र! पाखण्ड, घमण्ड, अभिमान, क्रोध, निष्ठुरता और अज्ञानता यह सभी
आसुरी स्वभाव (गुण) को लेकर उत्पन्न हुए मनुष्य के
लक्षण हैं। 4
दैवीय गुण मुक्ति का कारण बनते हैं और आसुरी गुण
बन्धन का कारण माने जाते है, हे
पाण्डुपुत्र अर्जुन! तू शोक मत कर, क्योंकि
तू दैवीय गुणों से युक्त होकर उत्पन्न हुआ है। 5
हे अर्जुन! इस संसार में उत्पन्न सभी मनुष्यों
के स्वभाव दो प्रकार के ही होते है, एक
दैवीय स्वभाव और दूसरा आसुरी स्वभाव, उनमें
से दैवीय गुणों को तो विस्तार पूर्वक कह चुका हूँ,
अब
तू आसुरी गुणों को भी मुझसे सुन। 6
आसुरी स्वभाव वाले मनुष्य यह नही जानते हैं कि
क्या करना चाहिये और क्या नही करना चाहिये, वह
न तो बाहर से और न अन्दर से ही पवित्र होते है, वह
न तो कभी उचित आचरण करते है और न ही उनमें सत्य ही पाया जाता है। 7
आसुरी
स्वभाव वाले मनुष्य कहते हैं कि जगत् झूठा है इसका न तो कोई आधार है और न ही कोई
ईश्वर है, यह संसार बिना किसी कारण के
केवल स्त्री-पुरुष के संसर्ग से उत्पन्न हुआ है,
कामेच्छा
के अतिरिक्त अन्य कोई कारण नही है। 8
इस
प्रकार की दृष्टि को स्वीकार करने वाले मनुष्य जिनका आत्म-ज्ञान नष्ट हो गया है, बुद्धिहीन होते है, ऎसे आसुरी स्वभाव वाले मनुष्य
केवल विनाश के लिये ही अनुपयोगी कर्म करते हैं जिससे संसार का अहित होता है। 9
आसुरी स्वभाव वाले मनुष्य कभी न तृप्त होने वाली काम-वासनाओं के अधीन, झूठी मान-प्रतिष्ठा के अहंकार से युक्त, मोहग्रस्त होकर ज़ड़ वस्तुओं को प्राप्त करने के लिये अपवित्र संकल्प धारण किये रहते हैं। 10
आसुरी स्वभाव वाले मनुष्य जीवन के अन्तिम समय तक
असंख्य चिन्ताओं के आधीन रहते है, उनके
जीवन का परम-लक्ष्य केवल इन्द्रियतृप्ति के लिये ही निश्चित रहता है। 11
आसुरी स्वभाव वाले मनुष्य आशा-रूपी सैकड़ों
रस्सीयों से बँधे हुए कामनाओं और क्रोध के आधीन होकर इन्द्रिय-विषयभोगों के लिए
अवैध रूप से धन को जमा करने की इच्छा करते रहते हैं। 12
आसुरी स्वभाव वाले मनुष्य सोचते रहते हैं कि आज मैंने इतना धन प्राप्त कर लिया है, अब इससे और अधिक धन प्राप्त कर लूंगा, मेरे पास आज इतना धन है, भविष्य में बढ़कर और अधिक हो जायेगा। 13 Astro Motive Astrology by Astrologer Dr. C K Singh
आसुरी स्वभाव वाले मनुष्य सोचते रहते हैं कि वह
शत्रु मेरे द्वारा मारा गया और उन अन्य शत्रुओं को भी मैं मार डालूँगा, मैं ही भगवान हूँ, मैं ही समस्त ऐश्र्वर्य को
भोगने वाला हूँ, मैं
ही सिद्ध हूँ, मैं
ही सबसे शक्तिशाली हूँ, और
मैं ही सबसे सुखी हूँ। 14
आसुरी स्वभाव वाले मनुष्य सोचते रहते हैं कि मैं
सबसे धनी हूँ, मेरा
सम्बन्ध बड़े कुलीन परिवार से है, मेरे
समान अन्य कौन है? मैं
यज्ञ करूँगा, दान
दूँगा और इस प्रकार मै जीवन का मजा लूँगा, इस
प्रकार आसुरी स्वभाव वाले मनुष्य अज्ञानवश मोहग्रस्त होते रहते हैं। 15
अनेक प्रकार की चिन्ताओं से भ्रमित होकर मोह
रूपी जाल से बँधे हुए इन्द्रिय-विषयभोगों में आसक्त आसुरी स्वभाव वाले मनुष्य
महान् अपवित्र नरक में गिर जाते हैं। 16
आसुरी स्वभाव वाले स्वयं को ही श्रेष्ठ मानने
वाले घमण्डी मनुष्य धन और झूठी मान-प्रतिष्ठा के मद में लीन होकर केवल नाम-मात्र
के लिये बिना किसी शास्त्र-विधि के घमण्ड के साथ यज्ञ करते हैं। 17
आसुरी स्वभाव वाले मनुष्य मिथ्या अहंकार, बल, घमण्ड, कामनाओं और क्रोध के आधीन होकर
अपने और दूसरों के शरीर में स्थित मुझ परमात्मा की निन्दा करने वाले ईर्ष्यालु
होते हैं। 18
आसुरी
स्वभाव वाले ईष्यालु, क्रूरकर्मी
और मनुष्यों में अधम होते हैं, ऎसे
अधम मनुष्यों को मैं संसार रूपी सागर में निरन्तर आसुरी योनियों में ही गिराता
रहता हूँ। 19
हे
कुन्तीपुत्र! आसुरी योनि को प्राप्त हुए मूर्ख मनुष्य अनेकों जन्मों तक आसुरी योनि
को ही प्राप्त होते रहते हैं, ऎसे
आसुरी स्वभाव वाले मनुष्य मुझे प्राप्त न होकर अत्यन्त अधम गति (निम्न योनि) को ही प्राप्त होते हैं। 20
हे
अर्जुन! जीवात्मा का विनाश करने वाले "काम, क्रोध और लोभ" यह तीन प्रकार के द्वार मनुष्य
को नरक में ले जाने वाले हैं, इसलिये
इन तीनों को त्याग देना चाहिए। 21
हे
कुन्तीपुत्र! जो मनुष्य इन तीनों अज्ञान रूपी नरक के द्वारों से मुक्त हो जाता है, वह मनुष्य अपनी आत्मा के लिये
कल्याणकारी कर्म का आचरण करता हुआ परम-गति (परमात्मा) को प्राप्त हो जाता है। 22
जो मनुष्य कामनाओं के वश में होकर शास्त्रों की विधियों
को त्याग कर अपने ही मन से उत्पन्न की गयीं विधियों से कर्म करता रहता है, वह मनुष्य न तो सिद्धि को
प्राप्त कर पाता है, न
सुख को प्राप्त कर पाता है और न परम-गति को ही प्राप्त हो पाता है। 23
हे अर्जुन! मनुष्य को क्या कर्म करना चाहिये और क्या कर्म नही करना चाहिये इसके लिये शास्त्र ही एक मात्र प्रमाण होता है, इसलिये तुझे इस संसार में शास्त्र की विधि को जानकर ही कर्म करना चाहिये। 24 Astro Motive Astrology by Astrologer Dr. C K Singh
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