Bhagavad Gita Mahatmya Geeta Gyan Spiritual Hindi
||श्रीमद भगवद गीता||
गीता माहात्म्यं
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Gita Mahatmya |
श्रीमद भगवद गीता का माहात्म्यं
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श्री वाराह पुराणे में गीता का माहात्म्यं बताते हुए श्री विष्णु जी कहते हैं :
श्रीविष्णुरुवाच:
प्रारब्ध को भोगता हुआ जो मनुष्य 'सदा' श्रीगीता के अभ्यास में आसक्त हो वही इस लोक में मुक्त 'और' सुखी होता है 'तथा' कर्म में लेपायमान 'नहीं' होता |(2)
जिस प्रकार कमल के पत्ते को जल स्पर्श 'नहीं' करता उसी प्रकार जो मनुष्य श्रीगीता का ध्यान करता है उसे महापापादि पाप 'कभी' स्पर्श नहीं करते |(3) Bhagavad Gita
जहाँ श्रीगीता की पुस्तक होती है और जहाँ श्रीगीता का पाठ होता है वहाँ प्रयागादि 'सर्व' तीर्थ निवास करते हैं |(4)
जहाँ श्रीगीता प्रवर्तमान है वहाँ 'सभी' देवों, ऋषियों, योगियों, नागों और गोपालबाल श्रीकृष्ण भी नारद, ध्रुव आदि सभी पार्षदों सहित 'जल्दी ही' सहायक होते हैं |(5)
जहाँ श्री गीता का विचार, पठन, पाठन तथा श्रवण होता है वहाँ मैं (श्री विष्णु भगवान) 'अवश्य' निवास करता हूँ | (6) Bhagavad Gita
मैं (श्री विष्णु भगवान) श्रीगीता के आश्रय में रहता हूँ, श्रीगीता मेरा (श्री विष्णु भगवान) 'उत्तम' घर है और श्रीगीता के ज्ञान का आश्रय करके मैं (श्री विष्णु भगवान) तीनों लोकों का पालन करता हूँ |(7)
श्रीगीता 'अति' अवर्णनीय पदोंवाली, अविनाशी, अर्धमात्रा तथा अक्षरस्वरूप, नित्य, ब्रह्मरूपिणी और 'परम' श्रेष्ठ मेरी (श्री विष्णु भगवान) विद्या है इसमें सन्देह नहीं है|(8)
वह श्रीगीता चिदानन्द श्रीकृष्ण ने अपने मुख से अर्जुन को कही हुई तथा तीनों वेदस्वरूप, परमानन्दस्वरूप तथा तत्त्वरूप पदार्थ के ज्ञान से युक्त है |(9)
जो मनुष्य स्थिर मन वाला होकर 'नित्य' श्री गीता के 18 अध्यायों का जप-पाठ करता है वह ज्ञानस्थ सिद्धि को प्राप्त होता है 'और' फिर परम पद को पाता है |(10)
संपूर्ण पाठ करने में असमर्थ हो तो आधा पाठ करे, तो भी गाय के दान से होने वाले पुण्य को प्राप्त करता है, इसमें सन्देह नहीं |(11) Bhagavad Gita
तीसरे भाग का पाठ करे तो गंगास्नान का फल प्राप्त करता है 'और' छठवें भाग का पाठ करे तो सोमयाग का फल पाता है |(12)
जो मनुष्य भक्तियुक्त होकर 'नित्य' एक अध्याय का 'भी' पाठ करता है, वह रुद्रलोक को प्राप्त होता है और वहाँ शिवजी का गण बनकर 'चिरकाल तक' निवास करता है |(13)
जो मनुष्य 'नित्य' एक अध्याय एक श्लोक अथवा श्लोक के एक चरण का पाठ करता है वह मन्वंतर तक मनुष्यता को प्राप्त करता है|(14) Bhagavad Gita
जो मनुष्य गीता के दस, सात, पाँच, चार, तीन, दो, एक या आधे श्लोक का पाठ करता है वह 'अवश्य' दस हजार वर्ष तक चन्द्रलोक को प्राप्त होता है |(15)
गीता के पाठ में लगे हुए मनुष्य की अगर मृत्यु होती है तो वह (पशु आदि की अधम योनियों में 'न' जाकर) पुनः मनुष्य जन्म पाता है|,(16)
(और वहाँ) गीता का पुनः अभ्यास करके 'उत्तम' मुक्ति को पाता है | 'गीता' ऐसे उच्चार के साथ जो मरता है वह सदगति को पाता है |(17) Astro Motive Astrology by Astrologer Dr. C K Singh
गीता का अर्थ तत्पर सुनने में 'तत्पर' बना हुआ मनुष्य महापापी हो तो भी वह वैकुण्ठ को प्राप्त होता है 'और' विष्णु के साथ आनन्द करता है|(18)
अनेक कर्म करके 'नित्य' श्री गीता के अर्थ का जो विचार करता है उसे जीवन्मुक्त जानो | मृत्यु के बाद वह परम पद को पाता है |(19) Bhagavad Gita
गीता का आश्रय करके जनक आदि 'कई' राजा पाप रहित होकर लोक में यशस्वी बने हैं 'और' परम पद को प्राप्त हुए हैं |(20)
श्रीगीता का पाठ करके जो माहात्म्य का पाठ 'नहीं' करता है उसका पाठ निष्फल होता है 'और' ऐसे पाठ को श्रमरूप कहा है |(21) Astro Motive Astrology by Astrologer Dr. C K Singh
इस माहात्म्यसहित श्रीगीता का जो अभ्यास करता है वह उसका फल पाता है 'और' दुर्लभ गति को प्राप्त होता है |(22)
सूत उवाच:
जो 'अपने आप' श्रीविष्णु भगवान के मुखकमल से निकली हुई है गीता 'अच्छी तरह' कण्ठस्थ करना चाहिए | अन्य शास्त्रों के संग्रह से क्या लाभ?(5) Bhagavad Gita
गीता धर्ममय, सर्वज्ञान की प्रयोजक तथा सर्व शास्त्रमय है, अतः गीता श्रेष्ठ है |(6)
जो मनुष्य 'घोर' संसार-सागर को तैरना चाहता है उसे गीतारूपी नौका पर चढ़कर 'सुखपूर्वक' पार होना चाहिए |(7) Astro Motive Astrology by Astrologer Dr. C K Singh
जो पुरुष इस पवित्र गीताशास्त्र को 'सावधान होकर' पढ़ता है वह भय, शोक 'आदि' से रहित होकर श्रीविष्णुपद को प्राप्त होता है |(8)
जिसने सदैव अभ्यासयोग से गीता का ज्ञान सुना नहीं है फिर भी जो मोक्ष की इच्छा करता है वह मूढात्मा, बालक की तरह हँसी का पात्र होता है |(9)
जो 'रात-दिन' गीताशास्त्र पढ़ते हैं 'अथवा' इसका पाठ करते हैं 'या' सुनते हैं उन्हें मनुष्य नहीं अपितु 'निःसन्देह' देव ही जानें |(10) Bhagavad Gita
हर रोज जल से किया हुआ स्नान मनुष्यों का मैल दूर करता है किन्तु गीतारूपी जल में 'एक' बार किया हुआ स्नान भी संसाररूपी मैल का नाश करता है |(11)
जो मनुष्य स्वयं गीता शास्त्र का पठन-पाठन 'नहीं' जानता है, जिसने अन्य लोगों से वह 'नहीं' सुना है, स्वयं को उसका ज्ञान 'नहीं' है, जिसको उस पर श्रद्धा 'नहीं' है, भावना भी 'नहीं' है, वह मनुष्य लोक में भटकते हुए शूकर जैसा ही है | उससे अधिक नीच दूसरा कोई मनुष्य नहीं है, क्योंकि वह गीता को 'नहीं' जानता है | Astro Motive Astrology by Astrologer Dr. C K Singh
जो गीता के अर्थ का पठन 'नहीं' करता उसके ज्ञान को, आचार को, व्रत को, चेष्टा को, तप को 'और' यश को धिक्कार है | उससे अधम और कोई मनुष्य नहीं है |(14)
जो ज्ञान गीता में 'नहीं' गाया गया है वह वेद 'और' वेदान्त में निन्दित होने के कारण उसे निष्फल, धर्मरहित 'और' आसुरी जानें |
जो मनुष्य रात-दिन, सोते, चलते, बोलते और खड़े रहते हुए गीता का यथार्थतः सतत अध्ययन करता है वह 'सनातन' मोक्ष को प्राप्त होता है|(16) Bhagavad Gita
योगियों के स्थान में, सिद्धों के स्थान में, श्रेष्ठ पुरुषों के आगे, संतसभा में, यज्ञस्थान में 'और' विष्णुभक्तोंके आगे गीता का पाठ करने वाला मनुष्य परम गति को प्राप्त होता है |(17)
जो गीता का पाठ 'और' श्रवण 'हर' रोज करता है उसने दक्षिणा के साथ अश्वमेध 'आदि' यज्ञ किये ऐसा माना जाता है |(18) Astro Motive Astrology by Astrologer Dr. C K Singh
जिसने 'भक्तिभाव से' एकाग्र चित्त से गीता का अध्ययन किया है उसने 'सर्व' वेदों, शास्त्रों तथा पुराणों का अभ्यास किया है ऐसा माना जाता है|(19)
जो मनुष्य 'स्वयं' गीता का अर्थ सुनता है, गाता है 'और' परोपकार हेतु सुनाता है वह परम पद को प्राप्त होता है |(20) Bhagavad Gita
जिस घर में गीता का पूजन होता है वहाँ (आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक) तीन ताप से उत्पन्न होने वाली पीड़ा तथा व्याधियों का भय 'नहीं' आता है | (21)
उसको शाप या पाप 'नहीं' लगता, 'जरा भी' दुर्गति नहीं होती 'और' छः शत्रु (काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर) देह में पीड़ा 'नहीं' करते |(22)
जहाँ 'निरन्तर' गीता का अभिनंदन होता है वहाँ श्री भगवान परमेश्वर में 'एकनिष्ठ' भक्ति उत्पन्न होती है | (23) Astro Motive Astrology by Astrologer Dr. C K Singh
स्नान किया हो या न किया हो, पवित्र हो या अपवित्र हो फिर भी जो परमात्म-विभूति का 'और' विश्वरूप का स्मरण करता है वह 'सदा' पवित्र है |(24)
सब जगह भोजन करने वाला और 'सर्व प्रकार का' दान लेने वाला भी अगर गीता पाठ करता हो तो 'कभी' लेपायमान नहीं होता | (25) Bhagavad Gita
जिसका चित्त 'सदा' गीता में ही रमण करता है वह 'संपूर्ण' अग्निहोत्री, 'सदा' जप करनेवाला, क्रियावान तथा पण्डित है | (26)
वह दर्शन करने योग्य, धनवान, योगी, ज्ञानी, याज्ञिक, ध्यानी तथा 'सर्व' वेद के अर्थ को जानने वाला है | (27) Bhagavad Gita
जहाँ गीता की पुस्तक का 'नित्य' पाठ होता रहता है वहाँ पृथ्वी पर के प्रयागादि 'सर्व' तीर्थ निवास करते हैं | (28)
उस घर में और देहरूपी देश में 'सभी' देवों, ऋषियों, योगियों और सर्पों का 'सदा' निवास होता है |(29)
गीता, गंगा, गायत्री, सीता, सत्या, सरस्वती, ब्रह्मविद्या, ब्रह्मवल्ली, त्रिसंध्या, मुक्तगेहिनी, अर्धमात्रा, चिदानन्दा, भवघ्नी, भयनाशिनी, वेदत्रयी, परा, अनन्ता और तत्त्वार्थज्ञानमंजरी (तत्त्वरूपी अर्थ के ज्ञान का भंडार) इस प्रकार (गीता के) अठारह नामों का स्थिर मन से जो मनुष्य 'नित्य' जप करता है वह 'शीघ्र' ज्ञानसिद्धि 'और' अंत में परम पद को प्राप्त होता है | (30,31,32)
मनुष्य जो-जो कर्म करे उसमें 'अगर' गीतापाठ चालू रखता है तो वह 'सब' कर्म निर्दोषता से संपूर्ण करके उसका फल प्राप्त करता है | (33) Bhagavad Gita
जो मनुष्य श्राद्ध में पितरों को लक्ष्य करके गीता का पाठ करता है उसके पितृ सन्तुष्ट होते हैं 'और' नर्क से सदगति पाते हैं | (34)
गीतापाठ से प्रसन्न बने हुए 'तथा' श्राद्ध से तृप्त किये हुए पितृगण पुत्र को आशीर्वाद देने के लिए तत्पर होकर पितृलोक में जाते हैं | (35) Bhagavad Gita
जो मनुष्य गीता को लिखकर गले में, हाथ में 'या' मस्तक पर धारण करता है उसके 'सर्व' विघ्नरूप दारूण उपद्रवों का नाश होता है | (36)
भरतखण्ड में चार वर्णों में मनुष्य देह प्राप्त करके भी जो 'अमृतस्वरूप' गीता 'नहीं' पढ़ता है 'या' नहीं सुनता है वह हाथ में आया हुआ अमृत छोड़कर कष्ट से विष खाता है | (37)
किन्तु जो मनुष्य गीता सुनता है, पढ़ता तो वह इस लोक में गीतारूपी अमृत का पान करके मोक्ष प्राप्त कर सुखी होता है | (38) Astro Motive Astrology by Astrologer Dr. C K Singh
संसार के दुःखों से पीड़ित जिन मनुष्यों ने गीता का ज्ञान सुना है उन्होंने अमृत प्राप्त किया है 'और' वे श्री हरि के धाम को प्राप्त हो चुके हैं | (39)
इस लोक में जनकादि की तरह 'कई' राजा गीता का आश्रय लेकर पापरहित होकर परम पद को प्राप्त हुए हैं | (40) Bhagavad Gita
गीता में उच्च 'और' नीच मनुष्य विषयक भेद 'ही' नहीं हैं, क्योंकि गीता ब्रह्मस्वरूप है अतः उसका ज्ञान सबके लिए 'समान' है | (41) Astro Motive Astrology by Astrologer Dr. C K Singh
गीता के अर्थ को 'परम' आदर से सुनकर जो आनन्दवान 'नहीं' होता वह मनुष्य प्रमाद के कारण इस लोक में फल 'नहीं' प्राप्त करता है किन्तु व्यर्थ श्रम 'ही' प्राप्त करता है | (42)
गीता का पाठ करे जो माहात्म्य का पाठ 'नहीं' करता है उसके पाठ का फल व्यर्थ होता है 'और' पाठ केवल श्रमरूप 'ही' रह जाता है | (43) Bhagavad Gita
इस माहात्म्य के साथ जो गीता पाठ करता है 'तथा' जो श्रद्धा से सुनता है वह दुर्लभ गति को प्राप्त होता है |(44)
गीता का 'सनातन' माहात्म्य मैंने कहा है | गीता पाठ के अन्त में जो इसका पाठ करता है वह उपर्युक्त फल को प्राप्त होता है | (45) Bhagavad Gita
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