Geeta Saar Bhagwat Geeta Hindi Geeta Spiritual Chapter 8
||श्रीमद भगवद गीता||
“अध्याय 8 - अक्षर ब्रह्मं योग”
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Astro Motive Astrology by Astrologer Dr. C K Singh |
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अर्जुन ने पूछा - हे पुरुषोत्तम! यह
"ब्रह्म" क्या है? "अध्यात्म"
क्या है? "कर्म" क्या है? "अधिभूत" किसे कहते हैं? और "अधिदैव" कौन कहलाते
हैं? 1
हे मधुसूदन! यहाँ "अधियज्ञ" कौन है? और वह इस शरीर में किस प्रकार
स्थित रहता है? और
शरीर के अन्त समय में आत्म-संयमी (योग-युक्त) मनुष्यों द्वारा आपको किस
प्रकार जाना जाता हैं? 2
श्री भगवान ने कहा - जो अविनाशी है वही
"ब्रह्म" (आत्मा) दिव्य है और आत्मा में स्थिर
भाव ही "अध्यात्म" कहलाता है तथा जीवों के वह भाव जो कि अच्छे या बुरे
संकल्प उत्पन्न करते है उन भावों का मिट जाना ही "कर्म" कहलाता है। 3
हे शरीर धारियों मे श्रेष्ठ अर्जुन! मेरी अपरा
प्रकृति जो कि निरन्तर परिवर्तनशील है अधिभूत कहलाती हैं, तथा मेरा वह विराट रूप जिसमें
सूर्य, चन्द्रमा आदि सभी देवता स्थित
है वह अधिदैव कहलाता है और मैं ही प्रत्येक शरीरधारी के हृदय में अन्तर्यामी रूप
स्थित अधियज्ञ (यज्ञ
का भोक्ता) हूँ। 4
जो मनुष्य जीवन के अंत समय में मेरा ही स्मरण
करता हुआ शारीरिक बन्धन से मुक्त होता है, वह
मेरे ही भाव को अर्थात मुझको ही प्राप्त होता है इसमें कुछ भी सन्देह नहीं है। 5
हे कुन्तीपुत्र! मनुष्य अंत समय में जिस-जिस भाव
का स्मरण करता हुआ शरीर का त्याग करता है, वह
उसी भाव को ही प्राप्त होता है, जिस
भाव का जीवन में निरन्तर स्मरण किया है। 6
इसलिए हे अर्जुन! तू हर समय मेरा ही स्मरण कर और
युद्ध भी कर, मन-बुद्धि
से मेरे शरणागत होकर तू निश्चित रूप से मुझको ही प्राप्त होगा। 7
हे पृथापुत्र! जो मनुष्य बिना विचलित हुए अपनी
चेतना (आत्मा) से योग में स्थित होने का
अभ्यास करता है, वह
निरन्तर चिन्तन करता हुआ उस दिव्य परमात्मा को ही प्राप्त होता है। 8
मनुष्य को उस परमात्मा के स्वरूप का स्मरण करना
चाहिये जो कि सभी को जानने वाला है, पुरातन
है, जगत का नियन्ता है, सूक्ष्म से भी अति सूक्ष्म है, सभी का पालनकर्ता है, अकल्पनीय-स्वरूप है, सूर्य के समान प्रकाशमान है और
अन्धकार से परे स्थित है। 9 Hindi Geeta
जो मनुष्य मृत्यु के समय अचल मन से भक्ति मे लगा
हुआ, योग-शक्ति के द्वारा प्राण को
दोनों भौंहौं के मध्य में पूर्ण रूप से स्थापित कर लेता है, वह निश्चित रूप से परमात्मा के
उस परम-धाम को ही प्राप्त होता है। 10
वेदों के ज्ञाता जिसे अविनाशी कहते है तथा
बडे़-बडे़ मुनि-सन्यासी जिसमें प्रवेश पाते है, उस
परम-पद को पाने की इच्छा से जो मनुष्य ब्रह्मचर्य-व्रत का पालन करते हैं, उस विधि को तुझे संक्षेप में
बतलाता हूँ। 11
शरीर के सभी द्वारों को वश में करके तथा मन को
हृदय में स्थित करके, प्राणवायु को सिर में रोक करके योग-धारणा में स्थित हुआ जाता है। 12
इस प्रकार ॐकार रूपी एक अक्षर ब्रह्म का उच्चारण
करके मेरा स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग कर जाता है,
वह
मनुष्य मेरे परम-धाम को प्राप्त करता है। 13
हे पृथापुत्र अर्जुन! जो मनुष्य मेरे अतिरिक्त
अन्य किसी का मन से चिन्तन नहीं करता है और सदैव नियमित रूप से मेरा ही स्मरण करता
है, उस नियमित रूप से मेरी भक्ति
में स्थित भक्त के लिए मैं सरलता से प्राप्त हो जाता हूँ। 14
मुझे प्राप्त करके उस मनुष्य का इस दुख-रूपी
अस्तित्व-रहित क्षणभंगुर संसार में पुनर्जन्म कभी नही होता है, बल्कि वह महात्मा परम-सिद्धि
को प्राप्त करके मेरे परम-धाम को प्राप्त होता है। 15
हे अर्जुन! इस ब्रह्माण्ड में निम्न-लोक से ब्रह्म-लोक तक के सभी लोकों में सभी जीव जन्म-मृत्यु को प्राप्त होते रह्ते हैं, किन्तु हे कुन्तीपुत्र अर्जुन! मुझे प्राप्त करके मनुष्य का पुनर्जन्म कभी नहीं होता है। 16 Astro Motive Astrology by Astrologer Dr. C K Singh
जो मनुष्य एक हजार चतुर्युगों का ब्रह्मा का दिन
और एक हजार चतुर्युगों की ब्रह्मा की रात्रि को जानते है वह मनुष्य समय के तत्व को
वास्तविकता से जानने वाले होते हैं। 17
ब्रह्मा के दिन की शुरूआत में सभी जीव उस
अव्यक्त से प्रकट होते है और रात्रि की शुरूआत में पुन: अव्यक्त में ही विलीन हो
जाते हैं, उस अव्यक्त को ही ब्रह्म के
नाम से जाना जाता है। 18
हे पृथापुत्र! वही यह समस्त जीवों का समूह बार-बार उत्पन्न और विलीन होता रहता है, ब्रह्मा की रात्रि के आने पर विलीन हो जाता है और दिन के आने पर स्वत: ही प्रकट हो जाता है। 19
जिसे वेदों में अव्यक्त अविनाशी के नाम से कहा
गया है, उसी को परम-गति कहा जाता हैं
जिसको प्राप्त करके मनुष्य कभी वापस नहीं आता है,
वही
मेरा परम-धाम है। 21
हे पृथापुत्र! वह ब्रह्म जो परम-श्रेष्ठ है जिसे
अनन्य-भक्ति के द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है,
जिसके
अन्दर सभी जीव स्थित हैं और जिसके कारण सारा जगत दिखाई देता है। 22
हे भरतश्रेष्ठ! जिस समय में शरीर को त्यागकर
जाने वाले योगीयों का पुनर्जन्म नही होता हैं और जिस समय में शरीर त्यागने पर
पुनर्जन्म होता हैं, उस
समय के बारे में बतलाता हूँ। 23
जिस समय ज्योतिर्मय अग्नि जल रही हो, दिन का पूर्ण सूर्य-प्रकाश हो, शुक्ल-पक्ष का चन्द्रमा बढ़
रहा हो और जब सूर्य उत्तर-दिशा में रहता है उन छः महीनों के समय में शरीर का त्याग
करने वाले ब्रह्मज्ञानी मनुष्य ब्रह्म को प्राप्त होते हैं। 24
जिस समय अग्नि से धुआँ फ़ैल रहा हो, रात्रि का अन्धकार हो, कृष्ण-पक्ष का चन्द्रमा घट रहा
हो और जब सूर्य दक्षिण दिशा में रहता है उन छः महीनों के समय में शरीर त्यागने
वाला स्वर्ग-लोकों को प्राप्त होकर अपने शुभ कर्मों का फल भोगकर पुनर्जन्म को
प्राप्त होता है। 25
वेदों के अनुसार इस मृत्यु-लोक से जाने के दो ही
शाश्वत मार्ग है - एक प्रकाश का मार्ग और दूसरा अंधकार का मार्ग, जो मनुष्य प्रकाश मार्ग से
जाता है वह वापस नहीं आता है, और
जो मनुष्य अंधकार मार्ग से जाता है वह वापस लौट आता है। 26
हे पृथापुत्र! भक्ति में स्थित मेरा कोई भी भक्त
इन सभी मार्गों को जानते हुए भी कभी मोहग्रस्त नहीं होता है, इसलिये हे अर्जुन! तू हर समय
मेरी भक्ति में स्थिर हो। 27
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