भगवद गीता 4, Bhagavad Gita, Hindi Gita, Bhagavad Gita in Hindi, गीता सार, गीता ज्ञान, गीता उपदेश, गीता श्लोक, भगवत गीता, संपूर्ण गीता पाठ Astro Motive Astrology by Astrologer Dr. C K Singh
श्री भगवान ने कहा - मैंने इस अविनाशी योग-विधा का उपदेश सृष्टि के आरम्भ में
विवस्वान (सूर्य देव) को दिया था, विवस्वान ने यह उपदेश अपने पुत्र मनुष्यों के जन्म-दाता
मनु को दिया और मनु ने यह उपदेश अपने पुत्र राजा इक्ष्वाकु को दिया। 1
हे परन्तप अर्जुन! इस प्रकार गुरु-शिष्य परम्परा से
प्राप्त इस विज्ञान सहित ज्ञान को राज-ऋषियों ने बिधि-पूर्वक समझा, किन्तु समय के प्रभाव
से वह परम-श्रेष्ठ विज्ञान सहित ज्ञान इस संसार से प्राय: छिन्न-भिन्न होकर नष्ट
हो गया। 2 Bhagavad Gita Hindi Gita
आज मेरे द्वारा वही यह प्राचीन योग (आत्मा का परमात्मा से मिलन का
विज्ञान) तुझसे कहा जा रहा है क्योंकि तू मेरा भक्त और प्रिय मित्र भी है, अत: तू ही इस उत्तम रहस्य को समझ सकता है। 3
अर्जुन ने कहा - सूर्य देव का जन्म तो सृष्टि के
प्रारम्भ हुआ है और आपका जन्म तो अब हुआ है, तो फ़िर मैं कैसे समूझँ कि सृष्टि के आरम्भ में आपने ही इस योग का उपदेश
दिया था? 4
श्री भगवान ने कहा - हे परंतप अर्जुन! मेरे और तेरे
अनेकों जन्म हो चुके हैं, मुझे तो वह सभी जन्म याद है लेकिन
तुझे कुछ भी याद नही है। 5
यधपि मैं अजन्मा और अविनाशी समस्त जीवात्माओं का परमेश्वर(स्वामी) होते हुए भी अपनी अपरा-प्रकृति (महा-माया) को अधीन करके अपनी परा-प्रकृति (योग-माया) से प्रकट होता हूँ। 6
हे भारत! जब भी और जहाँ भी धर्म की हानि होती है और अधर्म की वृद्धि होती
है, तब मैं अपने स्वरूप को प्रकट करता हूँ। 7 Bhagavad Gita Hindi Gita
भक्तों का उद्धार करने के लिए, दुष्टों का
सम्पूर्ण विनाश करने के लिए तथा धर्म की फ़िर से स्थापना करने के लिए मैं प्रत्येक
युग में प्रकट होता हूँ। 8
हे अर्जुन! मेरे जन्म और कर्म दिव्य (अलौकिक) हैं, इस प्रकार जो कोई वास्तविक स्वरूप से मुझे
जानता है, वह शरीर को त्याग कर इस संसार मे फ़िर से जन्म को
प्राप्त नही होता है, बल्कि मुझे अर्थात मेरे सनातन धाम को
प्राप्त होता है। 9
आसक्ति,
भय तथा क्रोध से सर्वथा मुक्त होकर,
अनन्य-भाव (
शुद्द भक्ति-भाव) से मेरी शरणागत होकर बहुत से मनुष्य मेरे इस ज्ञान से पवित्र होकर तप
द्वारा मुझे अपने-भाव से मेरे-भाव को प्राप्त कर चुके हैं। 10
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हे पृथापुत्र! जो मनुष्य जिस भाव से मेरी शरण ग्रहण करता हैं, मैं भी उसी भाव के
अनुरुप उनको फ़ल देता हूँ, प्रत्येक मनुष्य सभी प्रकार से
मेरे ही पथ का अनुगमन करते हैं। 11
इस संसार में मनुष्य फल की इच्छा से (सकाम-कर्म) यज्ञ करते है और फ़ल की प्राप्ति के लिये वह देवताओं की पूजा करते हैं,
उन मनुष्यों को उन कर्मों का फ़ल इसी संसार में निश्चित रूप से
शीघ्र प्राप्त हो जाता है। 12 Bhagavad Gita Hindi Gita
प्रकृति के तीन गुणों (सत, रज, तम) के आधार पर कर्म को चार विभागों(ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र) में मेरे द्वारा रचा गया, इस प्रकार मानव समाज की
कभी न बदलने वाली व्यवस्था का कर्ता होने पर भी तू मुझे अकर्ता ही समझ। 13
कर्म के फल में मेरी आसक्ति न होने के कारण कर्म मेरे लिये बन्धन उत्पन्न नहीं कर पाते हैं,
इस प्रकार से जो मुझे जान लेता है,
उस मनुष्य के कर्म भी उसके लिये कभी बन्धन उत्पन्न नही करते हैं। 14
पूर्व समय में भी सभी प्रकार के कर्म-बन्धन से मुक्त होने की इच्छा वाले
मनुष्यों ने मेरी इस दिव्य प्रकृति को समझकर कर्तव्य-कर्म करके मोक्ष की प्राप्ति
की, इसलिए तू भी उन्ही का अनुसरण करके अपने कर्तव्य का पालन कर। 15 Astro Motive Astrology by Astrologer Dr. C K Singh
कर्म क्या है और अकर्म क्या है, इस विषय में बडे से बडे बुद्धिमान
मनुष्य भी मोहग्रस्त रहते हैं, इसलिए उन कर्म को मैं तुझे
भली-भाँति समझा कर कहूँगा, जिसे जानकर तू संसार के कर्म-बंधन
से मुक्त हो सकेगा। 16 Bhagavad Gita Hindi Gita
कर्म को भी समझना चाहिए तथा अकर्म को भी समझना चाहिए और विकर्म को भी समझना
चाहिए क्योंकि कर्म की सूक्ष्मता को समझना अत्यन्त कठिन है। 17
जो मनुष्य कर्म में अकर्म (शरीर को कर्ता न समझकर आत्मा को कर्ता)देखता है और जो
मनुष्य अकर्म में कर्म (आत्मा को कर्ता न समझकर प्रकृति
को कर्ता) देखता है, वह मनुष्यों
में बुद्धिमान है और वह मनुष्य समस्त कर्मों को करते हुये भी सांसारिक कर्मफ़लों
से मुक्त रहता है। 18
जिस मनुष्य के निश्चय किये हुए सभी कार्य बिना फ़ल की इच्छा के पूरी
लगन से सम्पन्न होते हैं तथा जिसके सभी कर्म ज्ञान-रूपी अग्नि में भस्म हो गए हैं,
बुद्धिमान लोग उस महापुरुष को पूर्ण-ज्ञानी कहते हैं। 19 Astro Motive Astrology by Astrologer Dr. C K Singh
जो मनुष्य अपने सभी कर्म-फलों की आसक्ति का त्याग करके सदैव सन्तुष्ट तथा स्वतन्त्र रहकर कार्यों में पूर्ण व्यस्त होते हुए भी वह मनुष्य
निश्चित रूप से कुछ भी नहीं करता है। 20
जिस मनुष्य ने सभी प्रकार के कर्म-फ़लों की आसक्ति और सभी प्रकार की
सम्पत्ति के स्वामित्व का त्याग कर दिया है, ऎसा शुद्ध मन तथा स्थिर बुद्धि वाला,
केवल शरीर-निर्वाह के लिए कर्म करता हुआ कभी पाप-रूपी फ़लों को
प्राप्त नही होता है। 21
जो मनुष्य स्वत: प्राप्त होने वाले लाभ से संतुष्ट रहता है, जो सभी द्वन्द्वो से
मुक्त और किसी से ईर्ष्या नही करता है, जो सफ़लता और असफ़लता
में स्थिर रहता है यधपि सभी प्रकार के कर्म करता हुआ कभी बँधता नही है। 22 Astro Motive Astrology by Astrologer Dr. C K Singh
प्रकृति के गुणों से मुक्त हुआ तथा ब्रह्म-ज्ञान में पूर्ण रूप से स्थित और
अच्छी प्रकार से कर्म का आचरण करने वाले मनुष्य के सभी कर्म ज्ञान रूप ब्रह्म में
पूर्ण रूप से विलीन हो जाते हैं। 23
ब्रह्म-ज्ञान में स्थित उस मुक्त पुरूष का समर्पण ब्रह्म होता है,
हवन की सामग्री भी ब्रह्म होती है,
अग्नि भी
ब्रह्म होती है,
तथा ब्रह्म-रूपी अग्नि में ब्रह्म-रूपी
कर्ता द्वारा जो हवन किया जाता है वह ब्रह्म ही होता है,
जिसके
कर्म ब्रह्म का स्पर्श करके ब्रह्म में विलीन हो चुके हैं ऎसे महापुरूष को प्राप्त
होने योग्य फल भी ब्रह्म ही होता हैं। 24
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कुछ मनुष्य अनेक प्रकार के यज्ञों द्वारा देवताओं की भली-भाँति पूजा करते
हैं और इस प्रकार कुछ मनुष्य परमात्मा रूपी अग्नि में ध्यान-रूपी यज्ञ द्वारा यज्ञ
का अनुष्ठान करते हैं। 25
कुछ मनुष्य सभी ज्ञान-इन्द्रियों के विषयों को संयम-रूपी अग्नि में हवन
करते हैं और कुछ मनुष्य इन्द्रियों के विषयों को इन्द्रिय-रूपी अग्नि में हवन करते
हैं। 26
कुछ मनुष्य सभी इन्द्रियों को वश में करके प्राण-वायु के कार्यों को
मन के संयम द्वारा आत्मा को जानने की इच्छा से आत्म-योग रूपी अग्नि में हवन करते
हैं। 27
कुछ मनुष्य धन-सम्पत्ति के दान द्वारा,
कुछ
मनुष्य तपस्या द्वारा और कुछ मनुष्य अष्टांग योग के अभ्यास द्वारा यज्ञ करते हैं,
कुछ अन्य मनुष्य वेद-शास्त्रों का अध्यन करके ज्ञान में निपुण होकर
और कुछ मनुष्य कठिन व्रत धारण करके यज्ञ करते है। 28
बहुत से मनुष्य अपान-वायु में प्राण-वायु का, उसी प्रकार प्राण-वायु में अपान-वायु का
हवन करते हैं तथा अन्य मनुष्य प्राण-वायु और अपान-वायु की गति को रोक कर समाधि मे
प्रवृत होते है। 29
कुछ मनुष्य भोजन को कम करके प्राण-वायु को प्राण-वायु में ही हवन किया करते
हैं, ये सभी यज्ञ करने वाले यज्ञों का अर्थ जानने के कारण सभी पाप-कर्मों से
मुक्त हो जाते हैं। 30
हे कुरुश्रेष्ठ अर्जुन! यज्ञों के फ़ल रूपी अमृत को चखकर यह सभी योगी सनातन
परब्रह्म परमात्मा को प्राप्त होते हैं, और यज्ञ को न करने वाले मनुष्य तो इस
जीवन में भी सुख-पूर्वक नहीं रह सकते है, तो फिर अगले जीवन
में कैसे सुख को प्राप्त हो सकते है? 31
इसी प्रकार और भी अनेकों प्रकार के यज्ञ वेदों की वाणी में विस्तार से कहे
गए हैं, इस तरह उन सबको कर्म से उत्पन्न होने वाले जानकर तू कर्म-बंधन से हमेशा के
लिये मुक्त हो जाएगा। 32
हे परंतप अर्जुन! धन-सम्पदा के द्वारा किये जाने वाले यज्ञ की
अपेक्षा ज्ञान-यज्ञ अत्यन्त श्रेष्ठ है तथा सभी प्रकार के कर्म ब्रह्म-ज्ञान में
पूर्ण-रूप से समाप्त हो जाते हैं। 33
यज्ञों के उस ज्ञान को तू गुरू के पास जाकर समझने का प्रयत्न कर, उनके प्रति पूर्ण-रूप
से शरणागत होकर सेवा करके विनीत-भाव से जिज्ञासा करने पर वे तत्वदर्शी
ब्रह्म-ज्ञानी महात्मा तुझे उस तत्व-ज्ञान का उपदेश करेंगे। 34 Astro Motive Astrology by Astrologer Dr. C K Singh
हे पाण्डुपुत्र! उस तत्व-ज्ञान को जानकर फिर तू कभी इस प्रकार के मोह को
प्राप्त नही होगा तथा इस जानकारी के द्वारा आचरण करके तू सभी प्राणीयों में अपनी
ही आत्मा का प्रसार देखकर मुझ परमात्मा में प्रवेश पा सकेगा। 35
यदि तू सभी पापियों से भी अधिक पाप करने वाला है, तो भी तू मेरे
ज्ञान-रूपी नौका द्वारा निश्चित रूप से सभी प्रकार के पापों से छूटकर संसार-रूपी दुख
के सागर को पार कर जाएगा। 36
हे अर्जुन! जिस प्रकार अग्नि ईंधन को जला कर भस्म कर देती है, उसी प्रकार यह
ज्ञान-रूपी अग्नि सभी सांसारिक कर्म-फ़लों को जला कर भस्म कर देती है। 37
इस संसार में ज्ञान के समान पवित्र
करने वाला निःसंदेह कुछ भी नहीं है, इस ज्ञान को तू स्वयं अपने हृदय में योग
की पूर्णता के समय अपनी ही आत्मा में अनुभव करेगा। 38
जो मनुष्य पूर्ण श्रद्धावान है और जिसने इन्द्रियों को वश में कर
लिया है, वही मनुष्य दिव्य-ज्ञान को प्राप्त होकर वह तत्क्षण
भगवत-प्राप्ति रूपी परम-शान्ति को प्राप्त हो जाता है। 39
जिस मनुष्य को शास्त्रों का ज्ञान नही है, शास्त्रों पर श्रद्धा नही है और
शास्त्रों को शंका की दृष्टि से देखता है वह मनुष्य निश्चित रूप से भ्रष्ट हो जाता
है, इस प्रकार भ्रष्ट हुआ संशयग्रस्त मनुष्य न तो इस जीवन
में और न ही अगले जीवन में सुख को प्राप्त होता है। 40 Hindi Gita
हे धनंजय! जिस मनुष्य ने अपने समस्त कर्म के फ़लों का त्याग कर दिया है और
जिसके दिव्य-ज्ञान द्वारा समस्त संशय मिट गये हैं, ऐसे आत्म-परायण मनुष्य को कर्म कभी नहीं
बाँधते है। 41
अत: हे भरतवंशी अर्जुन! तू अपने हृदय में स्थित इस
अज्ञान से उत्पन्न अपने संशय को ज्ञान-रूपी शस्त्र से काट, और योग में स्थित होकर युद्ध के लिए
खड़ा हो जा। 42
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