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Geeta Saar, Bhagavad Gita, Hindi Geeta, श्रीमद भगवद गीता अध्याय 10

Geeta Saar Bhagavad Gita Hindi Geeta Spiritual Chapter 10

||श्रीमद भगवद गीता||

अध्याय 10 - विभूति योग

भगवद गीता 10, गीता सार, Geeta Saar, Bhagavad Gita, Hindi Geeta, गीता ज्ञान, गीता उपदेशगीता श्लोक, भगवत गीता, संपूर्ण गीता पाठ Astro Motive Astrology by Astrologer Dr. C K Singh


श्री भगवान्‌ ने कहा - हे महाबाहु अर्जुन! तू मेरे परम-प्रभावशाली वचनों को फ़िर से सुन, क्योंकि मैं तुझे अत्यन्त प्रिय मानता हूँ इसलिये तेरे हित के लिये कहता हूँ। 1

मेरे ऎश्वर्य के प्रभाव को न तो कोई देवतागण जानते हैं और न ही कोई महान ऋषिगण ही जानते हैं, क्योंकि मैं ही सभी प्रकार से देवताओं और महर्षियों को उत्पन्न करने वाला हूँ। 2

जो मनुष्य मुझे जन्म-मृत्यु रहित, आदि-अंत रहित और सभी लोकों का महान ईश्वरीय रूप को जान जाता है, वह मृत्यु को प्राप्त होने वाला मनुष्य मोह से मुक्त होकर सभी पापों से मुक्त हो जाता है। 3

संशय को मिटाने वाली बुद्धि, मोह से मुक्ति दिलाने वाला ज्ञान, क्षमा का भाव, सत्य का आचरण, इंद्रियों का नियन्त्रण, मन की स्थिरता, सुख-दुःख की अनुभूति, जन्म-मृत्यु का कारण, भय-अभय की चिन्ता, अहिंसा का भाव, समानता का भाव, संतुष्ट होने का स्वभाव, तपस्या की शक्ति, दानशीलता का भाव और यश-अपयश की प्राप्ति में जो भी कारण होते हैं यह सभी मनुष्यों के अनेकों प्रकार के भाव मुझसे ही उत्पन्न होते हैं। 4-5 Astro Motive Astrology by Astrologer Dr. C K Singh

सातों महान ऋषि और उनसे भी पहले उत्पन्न होने वाले चारों सनकादि कुमारों तथा स्वयंभू मनु आदि यह सभी मेरे मन की इच्छा-शक्ति से उत्पन्न हुए हैं, संसार के सभी लोकों के समस्त जीव इन्ही की ही सन्ताने है। 6

जो मनुष्य मेरी इस विशेष ऎश्वर्य-पूर्ण योग-शक्ति को तत्त्व सहित जानता है, वह स्थिर मन से मेरी भक्ति में स्थित हो जाता है इसमें किसी भी प्रकार का सन्देह नहीं है। 7

मैं ही संपूर्ण जगत की उत्पत्ति का कारण हूँ और मुझसे ही सम्पूर्ण जगत की क्रियाशीलता है, इस प्रकार मानकर विद्वान मनुष्य अत्यन्त भक्ति-भाव से मेरा ही निरंतर स्मरण करते हैं। 8

जिन मनुष्यों के चित्त मुझमें स्थिर रहते हैं और जिन्होने अपना जीवन मुझको ही समर्पित कर दिया हैं, वह भक्तजन आपस में एक दूसरे को मेरा अनुभव कराते हैं, वह भक्त मेरा ही गुणगान करते हुए निरन्तर संतुष्ट रहकर मुझमें ही आनन्द की प्राप्ति करते हैं। 9

जो सदैव अपने मन को मुझमें स्थित रखते हैं और प्रेम-पूर्वक निरन्तर मेरा स्मरण करते हैं, उन भक्तों को मैं वह बुद्धि प्रदान करता हूँ, जिससे वह मुझको ही प्राप्त होते हैं। 10

हे अर्जुन! उन भक्तों पर विशेष कृपा करने के लिये उनके हृदय में स्थित आत्मा के द्वारा उनके अज्ञान रूपी अंधकार को ज्ञान रूपी दीपक के प्रकाश से दूर करता हूँ। 11

अर्जुन ने कहा - हे कृष्ण! आप परमेश्वर हैं, आप परब्रह्म हैं, आप परम-आश्रय दाता हैं, आप परम-शुद्ध चेतना हैं, आप शाश्वत-पुरुष हैं, आप दिव्य हैं, आप अजन्मा हैं, आप समस्त देवताओं के भी आदिदेव और आप ही सर्वत्र व्याप्त हैं। 12 Bhagavad Gita Geeta Saar

हे कृष्ण! जो अब आप स्वयं मुझे बता रहे हैं यह तो सभी ऋषिगण असित, देवल और व्यास तथा देवर्षि नारद भी कहते हैं। 13 Astro Motive Astrology by Astrologer Dr. C K Singh

हे केशव! जो यह सब कुछ आप मुझे बता रहे हैं, उसे मैं पूर्ण-सत्य रूप से स्वीकार करता हूँ, हे प्रभु! आपके स्वरूप को न तो देवतागण और न ही असुरगण जान सकते हैं। 14

हे पुरूषोत्तम! हे सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के स्वामी! हे समस्त देवताओं के देव! हे समस्त प्राणीयों को उत्पन्न करने वाले! हे सभी प्राणीयों के ईश्वर! एकमात्र आप ही अपने आपको जानते हैं या फ़िर वह ही जान पाता है जिसकी अन्तर-आत्मा में प्रकट होकर आप अपना ज्ञान कराते हैं। 15

हे कृष्ण! कृपा करके आप अपने उन अलौकिक ऎश्वर्यपूर्ण स्वरूपों को विस्तार से कहिये जिसे कहने में केवल आप ही समर्थ हैं, जिन ऎश्वर्यों द्वारा आप इन सभी लोकों में व्याप्त होकर स्थित हैं। 16

हे योगेश्वर! मैं किस प्रकार आपका निरन्तर चिंतन करके आपको जान सकता हूँ, और मैं आपके ईश्वरीय स्वरूप का किन-किन भावों से स्मरण करूँ? 17

हे जनार्दन! अपनी योग-शक्ति और अपने ऎश्वर्यपूर्ण रूपों को फिर भी विस्तार से कहिए, क्योंकि आपके अमृत स्वरूप वचनों को सुनते हुए भी मेरी तृप्ति नहीं हो रही है। 18

श्री भगवान ने कहा - हे कुरुश्रेष्ठ! हाँ अब मैं तेरे लिये अपने मुख्य अलौकिक ऎश्वर्यपूर्ण रूपों को कहूँगा, क्योंकि मेरे विस्तार की तो कोई सीमा नहीं है। 19

हे अर्जुन! मैं समस्त प्राणीयों के हृदय में स्थित आत्मा हूँ और मैं ही सभी प्राणीयों की उत्पत्ति का, मैं ही सभी प्राणीयों के जीवन का और मैं ही सभी प्राणीयों की मृत्यु का कारण हूँ। 20

मैं सभी आदित्यों में विष्णु हूँ, मैं सभी ज्योतियों में प्रकाशमान सूर्य हूँ, मैं सभी मरुतों में मरीचि नामक वायु हूँ, और मैं ही सभी नक्षत्रों में चंद्रमा हूँ। 21 Bhagavad Gita Geeta Saar

मैं सभी वेदों में सामवेद हूँ, मैं सभी देवताओं में स्वर्ग का राजा इंद्र हूँ, सभी इंद्रियों में मन हूँ, और सभी प्राणियों में चेतना स्वरूप जीवन-शक्ति हूँ। 22

मैं सभी रुद्रों में शिव हूँ, मैं यक्षों तथा राक्षसों में धन का स्वामी कुबेर हूँ, मैं सभी वसुओं में अग्नि हूँ और मै ही सभी शिखरों में मेरु हूँ। 23 Astro Motive Astrology by Astrologer Dr. C K Singh

हे पार्थ! सभी पुरोहितों में मुख्य बृहस्पति मुझे ही समझ, मैं सभी सेनानायकों में कार्तिकेय हूँ, और मैं ही सभी जलाशयों में समुद्र हूँ। 24 Bhagavad Gita Geeta Saar

मैं महर्षियों में भृगु हूँ, मैं सभी वाणी में एक अक्षर हूँ, मैं सभी प्रकार के यज्ञों में जप (कीर्तन) यज्ञ हूँ, और मैं ही सभी स्थिर (अचल) रहने वालों में हिमालय पर्वत हूँ। 25

मैं सभी वृक्षों में पीपल हूँ, मैं सभी देवर्षियों में नारद हूँ, मै सभी गन्धर्वों में चित्ररथ हूँ और मै ही सभी सिद्ध पुरूषों में कपिल मुनि हूँ। 26

समस्त घोड़ों में समुद्र मंथन से अमृत के साथ उत्पन्न उच्चैःश्रवा घोड़ा मुझे ही समझ, मैं सभी हाथियों में ऐरावत हूँ, और मैं ही सभी मनुष्यों में राजा हूँ। 27 Bhagavad Gita Geeta Saar

मैं सभी हथियारों में वज्र हूँ, मैं सभी गायों में सुरभि हूँ, मैं धर्मनुसार सन्तान उत्पत्ति का कारण रूप प्रेम का देवता कामदेव हूँ, और मै ही सभी सर्पों में वासुकि हूँ। 28

मैं सभी नागों (फ़न वाले सर्पों) में शेषनाग हूँ, मैं समस्त जलचरों में वरुणदेव हूँ, मैं सभी पितरों में अर्यमा हूँ, और मैं ही सभी नियमों को पालन करने वालों में यमराज हूँ। 29

मैं सभी असुरों में भक्त-प्रहलाद हूँ, मै सभी गिनती करने वालों में समय हूँ, मैं सभी पशुओं में सिंह हूँ, और मैं ही पक्षियों में गरुड़ हूँ। 30

मैं समस्त पवित्र करने वालों में वायु हूँ, मैं सभी शस्त्र धारण करने वालों में राम हूँ, मैं सभी मछलियों में मगर हूँ, और मैं ही समस्त नदियों में गंगा हूँ। 31 Bhagavad Gita Geeta Saar

हे अर्जुन! मैं ही समस्त सृष्टियों का आदि, मध्य और अंत हूँ, मैं सभी विद्याओं में ब्रह्मविद्या हूँ, और मैं ही सभी तर्क करने वालों में निर्णायक सत्य हूँ। 32

मैं सभी अक्षरों में ओंकार हूँ, मैं ही सभी समासों में द्वन्द्व हूँ, मैं कभी न समाप्त होने वाला समय हूँ, और मैं ही सभी को धारण करने वाला विराट स्वरूप हूँ। 33

मैं ही सभी को नष्ट करने वाली मृत्यु हूँ, मैं ही भविष्य में सभी को उत्पन्न करने वाली सृष्टि हूँ, स्त्रीयों वाले गुणों में कीर्ति, सोन्दर्य, वाणी की मधुरता, स्मरण शक्ति, बुद्धि, धारणा और क्षमा भी मै ही हूँ। 34

मैं सामवेद की गाने वाली श्रुतियों में बृहत्साम हूँ, मैं छंदों में गायत्री छंद हूँ, मैं महीनों में मार्गशीर्ष और मैं ही ऋतुओं में वसंत हूँ। 35 Astro Motive Astrology by Astrologer Dr. C K Singh

मैं छलने वालो का जुआ हूँ, मैं तेजस्वियों का तेज हूँ, मैं जीतने वालों की विजय हूँ, मैं व्यवसायियों का निश्चय हूँ और मैं ही सत्य बोलने वालों का सत्य हूँ। 36

मैं वृष्णिवंशियों में वासुदेव हूँ, मैं ही पाण्डवों में अर्जुन हूँ, मैं मुनियों में वेदव्यास हूँ, और मैं ही कवियों में शुक्राचार्य हूँ। 37

मैं दमन करने वालों का दंड हूँ, मैं विजय की कामना वालों की नीति हूँ, मैं रहस्य रखने वालों का मौन हूँ और मैं ही ज्ञानीयों का ज्ञान हूँ। 38 Bhagavad Gita Geeta Saar

हे अर्जुन! वह बीज भी मैं ही हूँ जिनके कारण सभी प्राणीयों की उत्पत्ति होती है, क्योंकि संसार में कोई भी ऎसा चर (चलायमान) या अचर (स्थिर) प्राणी नहीं है, जो मेरे बिना अलग रह सके। 39

हे परन्तप अर्जुन! मेरी लौकिक और अलौकिक ऎश्वर्यपुर्ण स्वरूपों का अंत नहीं है, मैंने अपने इन ऎश्वर्यों का वर्णन तो तेरे लिए संक्षिप्त रूप से कहा है। 40

जो-जो ऐश्वर्ययुक्त, कांतियुक्त और शक्तियुक्त वस्तुयें है, उन-उन को तू मेरे तेज के अंश से ही उत्पन्न हुआ समझ। 41 Astro Motive Astrology by Astrologer Dr. C K Singh

किन्तु हे अर्जुन! तुझे इस प्रकार सारे ज्ञान को विस्तार से जानने की आवश्यकता ही क्या है, मैं तो अपने एक अंश मात्र से इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को धारण करके सर्वत्र स्थित रहता हूँ। 42




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