Geeta Saar Bhagwat Geeta Hindi Geeta Spiritual Chapter 7
||श्रीमद भगवद गीता||
“अध्याय 7 - ज्ञान विज्ञानं योग”
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Astro Motive Astrology by Astrologer Dr. C K Singh |
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श्री भगवान ने कहा - हे पृथापुत्र! अब उसको सुन जिससे तू योग का अभ्यास करते हुए मुझमें अनन्य भाव से मन को स्थित करके और मेरी शरण होकर सम्पूर्णता से मुझको बिना किसी संशय के जान सकेगा। 1 Astro Motive Astrology by Astrologer Dr. C K Singh
अब मैं तेरे लिए उस परम-ज्ञान को अनुभव सहित
कहूँगा, जिसको पूर्ण रूप से जानने के
बाद भविष्य में इस संसार में तेरे लिये अन्य कुछ भी जानने योग्य शेष नहीं रहेगा। 2
हजारों मनुष्यों में से कोई एक मेरी प्राप्ति
रूपी सिद्धि की इच्छा करता है और इस प्रकार सिद्धि की प्राप्ति के लिये प्रयत्न
करने वाले मनुष्यों में से भी कोई एक मुझको तत्व रूप से साक्षात्कार सहित जान पाता
है। 3 Geeta Saar Bhagwat Geeta
पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार - ऎसे यह आठ
प्रकार के भेदों वाली तो मेरी जड़ स्वरूप अपरा प्रकृति है। 4
हे महाबाहु अर्जुन! परन्तु इस जड़ स्वरूप अपरा
प्रकृति (माया) के अतिरिक्त अन्य चेतन दिव्य-स्वरूप परा प्रकृति (आत्मा) को जानने का प्रयत्न कर, जिसके द्वारा जीव रूप से संसार
का भोग किया जाता है। 5 Hindi Geeta
हे अर्जुन! तू मेरी इन जड़ तथा चेतन प्रकृतियों
को ही सभी प्राणीयों के जन्म का कारण समझ, और
मैं ही इस सम्पूर्ण जगत की उत्पत्ति तथा प्रलय का मूल कारण हूँ। 6
हे धनंजय! मेरे अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं है, जिस प्रकार माला में मोती धागे
पर आश्रित रहते हैं उसी प्रकार यह सम्पूर्ण जगत मणियों के समान मुझ पर ही आश्रित
है। 7
हे कुन्तीपुत्र! मैं ही जल का स्वाद हूँ, सूर्य तथा चन्द्रमा का प्रकाश
हूँ, समस्त वैदिक मन्त्रो में ओंकार
हूँ, आकाश में ध्वनि हूँ और
मनुष्यों द्वारा किया जाने वाला पुरुषार्थ भी मैं हूँ। 8
मैं पृथ्वी में पवित्र गंध हूँ, अग्नि में उष्मा हूँ, समस्त प्राणीयों में वायु रूप
में प्राण हूँ और तपस्वियों में तप भी मैं हूँ। 9
हे पृथापुत्र! तू मुझको ही सभी प्राणीयों का अनादि-अनन्त बीज समझ, मैं बुद्धिमानों की बुद्धि और तेजस्वी मनुष्यों का तेज हूँ। 10
प्रकृति के तीन गुण - सत्त्व-गुण, रज-गुण और तम-गुण से उत्पन्न
होने वाले भाव उन सबको तू मुझसे उत्पन्न होने वाले समझ, परन्तु प्रकृति के गुण मेरे
अधीन रहते है, मैं
उनके अधीन नही हूँ। 12
प्रकृति के इन तीनों गुणों से उत्पन्न भावों
द्वारा संसार के सभी जीव मोहग्रस्त रहते हैं, इस
कारण प्रकृति के गुणों से अतीत मुझ परम-अविनाशी को नहीं जान पाते हैं। 13
यह तीनों दिव्य गुणों से युक्त मेरी अपरा शक्ति स्वरुप माया को पार कर पाना असंभव है, परन्तु
जो मनुष्य मेरे शरणागत हो जाते हैं, वह
मेरी इस माया को आसानी से पार कर जाते हैं। 14
मनुष्यों में अधर्मी और दुष्ट स्वभाव वाले मूर्ख
लोग मेरी शरण ग्रहण नहीं करते है, ऐसे
नास्तिक-स्वभाव धारण करने वालों का ज्ञान मेरी माया द्वारा हर लिया जाता है। 15
हे भरतश्रेष्ठ अर्जुन! चार प्रकार के उत्तम कर्म
करने वाले (१) आर्त - दुख से निवृत्ति चाहने वाले,
(२) अर्थार्थी - धन-सम्पदा चाहने वाले (३) जिज्ञासु - केवल
मुझे जानने की इच्छा वाले और (४) ज्ञानी - मुझे ज्ञान सहित जानने वाले, भक्त मेरा स्मरण करते हैं। 16
इनमें से वह ज्ञानी सर्वश्रेष्ठ है जो सदैव
अनन्य भाव से मेरी शुद्ध-भक्ति में स्थित रहता है क्योंकि ऎसे ज्ञानी भक्त को मैं
अत्यन्त प्रिय होता हूँ और वह मुझे अत्यन्त प्रिय होता है। 17
यधपि ये चारों प्रकार के भक्त उदार हृदय वाले
हैं, परन्तु मेरे मत के अनुसार
ज्ञानी-भक्त तो साक्षात् मेरा ही स्वरूप होता है,
क्योंकि
वह स्थिर मन-बुद्धि वाला ज्ञानी-भक्त मुझे अपना सर्वोच्च लक्ष्य जानकर मुझमें ही
स्थित रहता है। 18
अनेकों जन्मों के बाद अपने अन्तिम जन्म में
ज्ञानी मेरी शरण ग्रहण करता है उसके लिये सभी के हृदय में स्थित सब कुछ मैं ही
होता हूँ, ऎसा महात्मा अत्यन्त दुर्लभ
होता है। 19
जिन मनुष्यों का ज्ञान सांसारिक कामनाओं के
द्वारा नष्ट हो चुका है, वे
लोग अपने-अपने स्वभाव के अनुसार पूर्व जन्मों के अर्जित संस्कारों के कारण प्रकृति
के नियमों के वश में होकर अन्य देवी-देवताओं की शरण में जाते हैं। 20 Hindi Geeta
जैसे ही कोई भक्त जिन देवी-देवताओं के स्वरूप को
श्रद्धा से पूजने की इच्छा करता है, मैं
उसकी श्रद्धा को उन्ही देवी-देवताओं के प्रति स्थिर कर देता हूँ। 21
वह भक्त सांसारिक सुख की कामनाओं से श्रद्धा से
युक्त होकर उन देवी-देवताओं की पूजा-आराधना करता है और उसकी वह कामनायें पूर्ण भी
होती है, किन्तु वास्तव में यह सभी
इच्छाऎं मेरे द्वारा ही पूरी की जाती हैं। 22
परन्तु उन अल्प-बुद्धि वालों को प्राप्त वह फल
क्षणिक होता है और भोगने के बाद समाप्त हो जाता हैं,
देवताओं
को पूजने वाले देवलोक को प्राप्त होते हैं किन्तु मेरे भक्त अन्तत: मेरे परम-धाम
को ही प्राप्त होते हैं। 23
बुद्धिहीन मनुष्य मुझ अप्रकट परमात्मा को मनुष्य
की तरह जन्म लेने वाला समझते हैं इसलिय वह मेरे सर्वश्रेष्ठ अविनाशी स्वरूप के
परम-प्रभाव को नही समझ पाते हैं। 24
मैं सभी के लिये प्रकट नही हूँ क्योंकि में अपनी
अन्तरंगा शक्ति योग-माया द्वारा आच्छादित रहता हूँ,
इसलिए
यह मूर्ख मनुष्य मुझ अजन्मा, अविनाशी
परमात्मा को नहीं समझ पाते है। 25
हे अर्जुन! मैं भूतकाल में, वर्तमान में और भविष्य में
जन्म-मृत्यु को प्राप्त होने वाले सभी प्राणीयों को जानता हूँ, परन्तु मुझे कोई नही जानता है।
26
हे भरतवंशी! हे शत्रुविजेता! संसार में सभी
प्राणी इच्छा-द्वेष आदि द्वन्दों से उत्पन्न मोह के कारण जन्म लेकर पुन: मोह को
प्राप्त होते हैं। 27
परन्तु जिस मनुष्य ने पूर्व-जन्मों में और इस
जन्म में पुण्य-कर्म किये हैं तथा उसके सभी पाप पूर्ण-रूप से नष्ट हो चुके हैं, वह दृढ-संकल्प के साथ मेरी
भक्ति करके मोह आदि सभी द्वन्दों से मुक्त हो जाता हैं। 28
जो मनुष्य मेरी शरण होकर वृद्धावस्था और मृत्यु
से मुक्ति पाने की इच्छा करता है, ऎसे
मनुष्य उस ब्रह्म को, परमात्मा
को और उसके सभी कर्मों को पूरी तरह से जानता हैं। 29
जो मनुष्य मुझे अधिभूत (सम्पूर्ण जगत का कर्ता), अधिदैव (सम्पूर्ण देवताओं का नियन्त्रक) तथा अधियज्ञ (सम्पूर्ण फ़लों का भोक्ता) सहित जानता हैं और जिसका मन निरन्तर मुझमें स्थित रहता है वह मनुष्य मृत्यु के समय में भी मुझे जानता है। 30 Astro Motive Astrology by Astrologer Dr. C K Singh
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